मार्च १७, २०२३ से मार्च १९, २०२३ तक संस्था की ओर से राखईगढ़ी की सफल यात्रा कर सांस्कृतिक रूप से […]
हम जिस धरती पर रहते हैं वह सबसे सुंदर गृह है। हरियाली युक्ता सुंदर और आकर्षक है। कुदरत हमारी सबसे […]
धर्म नियामक, पालक, संचालक , भर्ता।धर्मध्वज संरक्षक ,स्वामी तुम सबके कर्ता।
तुम देवत्व नियामक,हमपे कृपा करो।अतिपाखण्ड बढ़ा हैऋषिवर धर्म धरो।
कश्यप, अत्रि , महामुनि,विश्वामित्र ऋषी।भरद्वाज , गौतम , वशिष्ठजमदग्नि दयालु वशी।
सृष्टि सुरक्षा हेतुसप्त ऋषि तुमने यज्ञ किए।जब-जब धर्म घटा हैतुमने मार्ग दिए।
मत्त नहुष, कामातुरऋषि पालकी चढ़ा।अति नीचता बढ़ीतब तुमने मंत्र पढ़ा।
हो इंद्रत्वपतितअजगर बन कष्ट सहे।भक्त शचीपति भजकेप्रभुको राज लहे।
वेन राज अति दुष्टप्रजाजन बहु पीड़ित कीन्हे।मुष्टिक मारि हतो सोराज प्रभुहिं दीन्हें।
हम सप्तर्षिकुलोद्भवआरति नित गावैं।पूर्व पितामह सबकेतुमको हम ध्यावैं।
तुम व्यापक, अविनाशीधर्मध्वजा धारी।मन्वन्तर संस्थापकपीर हरो म्हारी।
जो सप्तर्षि आरती ,नित मन से गावै।धर्म-अर्थ-सुख-सम्पति-शुभ-सन्मति पावै।।
सप्तर्षिकुलम् द्वारा विरचित।