रेस्ट इन पीस
कभी-कभी हम भाषा और शब्दों के साथ अनजाने में विदेशी संस्कृति को ग्रहण कर लेते हैं जिसका हमें ज्ञान ही नहीं होता।
आजकल किसी भी दिवंगत के लिए आर आई पी अर्थात् रेस्ट इन पीस लिखने का प्रचलन बढ़ गया है।
पर पीस में रेस्ट कौन करेगा?
पंचतत्व की काया तो पंचतत्व में मिल गयी। वह रेस्ट कैसे करेगी?
और उसमें रहनेवाली आत्मा तो नित्य शांत ही रहती है, अविकारी है तो उसे न रेस्ट की आवश्यकता है और न पीस की ।
बाकी बचा सूक्ष्म शरीर । तो उसे अपने कर्मों के अनुसार गति मिलनी निश्चित है और यह गति निर्धारित करने का कार्य धर्मराज का है। गति निर्धारण की अवधि में सूक्ष्म शरीर का विचलन संभव है जिसके नियंत्रण के लिए उसके निमित्त गीता पाठ, जप-दानादि शुभ कर्म किए जाते हैं।
वहाँ धर्मराज कोई वोटिंग के आधार पर निर्णय नहीं लेते कि कितने लोगों ने आर आई पी कहा है!
फिर रेस्ट इन पीस की अवधारणा हमारी संस्कृति में कहाँ फिट होती है?
हाँ , अब्राह्मिक अपसंस्कृतियों में जहाँ कयामत तक मुर्दे को कब्र में रहना है और रूह को उसीके आसपास भटकना है , वहाँ रेस्ट इन पीस की आवश्यकता पड़ेगी।
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