धर्म की पत्नियां


धर्म और रिलिजन का अंतर मैं कईं बार बता चुका हूँ। आज आपको धर्म की पत्नियों के बारे में बताता हूँ।

श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कन्ध के प्रथम अध्याय में शुकदेव जी भगवान महाराज परीक्षित को धर्म की १३ पत्नियों का वर्णन करते है। दक्ष प्रजापति की १६ कन्यायें थीं जिनमें से १३ का विवाह धर्म के साथ कर दिया गया और उन १३ पत्नियों से धर्म के १३ ही पुत्र हुए।

श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, ह्री और मूर्ति– ये धर्म की पत्नियां हैं। इनमें से श्रद्धा ने शुभ, मैत्री ने प्रसाद, दया ने अभय, शान्ति ने सुख, तुष्टि ने मोद, पुष्टि ने अहंकार, क्रिया ने योग, उन्नति ने दर्प, बुद्धि ने अर्थ, मेधा ने स्मृति, तितिक्षा ने क्षेम, ह्री (लज्जा) ने प्रश्रय (विनय) नामक पुत्र उत्पन्न किया। और मूर्ति ने नर-नारायण को जन्म दिया।

मेरे पास आजकल का पढ़ा लिखा एक व्यक्ति आया और कहने लगा कि कथा में मैंने धर्म की १३ पत्नियों का वर्णन किया था। उसने इतना ही सुना और उसके बाद उसे सुनने की इच्छा ही नहीं हुई। और कहता कि क्या मज़ाक है!! आज के समय में धर्म की पत्नियां और वो भी १३। धर्म के १३ पुत्र भी? क्यों लोगों को अंधविश्वासी बनाते हो?

फिर मैंने उसे समझाया कि पुराणों की प्रत्येक कथा हमसे ही जुड़ी हुई है। समझाने के लिये बाहरी उदाहरण दिए गए हैं और इतिहास की दृष्टि से वो भी सही हैं। परन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से सब कुछ अपने भीतर ही है। यदि हमारे हृदय में धर्म है और हमारे हृदय में श्रद्धा भी जगती है तो हमारे जीवन में शुभ ही शुभ होगा। क्योंकि धर्म और श्रद्धा का मिलन होने पर शुभ नामक पुत्र की ही प्राप्ति होती है। जब हृदय में मैत्री आयेगी तो हमें प्रसाद ही मिलेगा। दया होगी तो अभय आएगा, हम निर्भय हो जायेंगे। शान्ति के आने से हमें सुख मिलेगा। तुष्टि से मोद और पुष्टि से हमें अहंकार की प्राप्ति होगी। अब वो गम्भीर हो गया था और फिर मैंने उसे आगे बताया।

हमारे धर्म और क्रिया के मिलन से हमें योग की ही प्राप्ति होगी, हृदय में धर्म के साथ उन्नति आयेगी तो दर्प पैदा होगा और बुद्धि जगेगी तो वो अर्थ को जन्म देगी। मेधा से स्मृति का उदय होगा, तितिक्षा से क्षेम आयेगा और लज्जा से विनय की प्राप्ति होगी। जब हृदय में धर्म के साथ भगवान के विग्रह (मूर्ति) को बसा लेंगे तो साक्षात नर और नारायण ही हमारे हृदय में प्रकट हो जायेंगे।

आज तक मनु महाराज के १० लक्षण सुने होंगे धर्म के। आज से धर्म की इन १३ पत्नियों को भी याद रखना और उनसे प्राप्त होने वाले पुत्रों को भी। इसलिये धार्मिक बनिये। और जिस फल की अभिलाषा हो, धर्म की उस कला को जागृत कीज़िये।

सुमित कृष्ण
वैशाख शुक्ल अष्टमी, विक्रम संवत २०७७
शुक्रवार; मई १, २०२०

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