धर्म और रिलिजन का अंतर मैं कईं बार बता चुका हूँ। आज आपको धर्म की पत्नियों के बारे में बताता […]
अरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः सृष्टि के विस्तार के लिए ब्रह्मा जी ने मन के संकल्प से अपने ही समान तेजस्वी दस मानस […]
हम जिस धरती पर रहते हैं वह सबसे सुंदर गृह है। हरियाली युक्ता सुंदर और आकर्षक है। कुदरत हमारी सबसे […]
संस्कारशाला का विचार कोई हमारा आविष्कार नहीं है , यह हमारे पूर्वजों द्वारा सुस्थापित प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था का ही नवीन […]
पिछले सौ वर्षों में समानता के नारे का बड़ा ज़ोर रहा है। ऊंचाई बराबर करने के लिए लाखों गर्दनें उड़ा […]
रेस्ट इन पीस कभी-कभी हम भाषा और शब्दों के साथ अनजाने में विदेशी संस्कृति को ग्रहण कर लेते हैं जिसका […]
छिलका उतरते ही ‘चावल’ हो जाता है। पढ़िए – ध्यान से। ज्ञानियोगी के विविध नियतमित साधनों के करने से शरीर […]
धर्म नियामक, पालक, संचालक , भर्ता।धर्मध्वज संरक्षक ,स्वामी तुम सबके कर्ता।
तुम देवत्व नियामक,हमपे कृपा करो।अतिपाखण्ड बढ़ा हैऋषिवर धर्म धरो।
कश्यप, अत्रि , महामुनि,विश्वामित्र ऋषी।भरद्वाज , गौतम , वशिष्ठजमदग्नि दयालु वशी।
सृष्टि सुरक्षा हेतुसप्त ऋषि तुमने यज्ञ किए।जब-जब धर्म घटा हैतुमने मार्ग दिए।
मत्त नहुष, कामातुरऋषि पालकी चढ़ा।अति नीचता बढ़ीतब तुमने मंत्र पढ़ा।
हो इंद्रत्वपतितअजगर बन कष्ट सहे।भक्त शचीपति भजकेप्रभुको राज लहे।
वेन राज अति दुष्टप्रजाजन बहु पीड़ित कीन्हे।मुष्टिक मारि हतो सोराज प्रभुहिं दीन्हें।
हम सप्तर्षिकुलोद्भवआरति नित गावैं।पूर्व पितामह सबकेतुमको हम ध्यावैं।
तुम व्यापक, अविनाशीधर्मध्वजा धारी।मन्वन्तर संस्थापकपीर हरो म्हारी।
जो सप्तर्षि आरती ,नित मन से गावै।धर्म-अर्थ-सुख-सम्पति-शुभ-सन्मति पावै।।
सप्तर्षिकुलम् द्वारा विरचित।