Brahmanda Purana

ब्रह्माण्डपुराण, अट्ठारह महापुराणों में से एक है। मध्यकालीन भारतीय साहित्य में इस पुराण को ‘वायवीय पुराण’ या ‘वायवीय ब्रह्माण्ड’ कहा गया है। ब्रह्माण्ड का वर्णन करनेवाले वायु ने व्यास जी को दिये हुए इस बारह हजार श्लोकों के पुराण में विश्व का पौराणिक भूगोल, विश्व खगोल, अध्यात्मरामायण आदि विषय हैं।

यह पुराण भविष्य कल्पों से युक्त और बारह हजार श्लोकों वाला है। इसके चार पद है, पहला प्रक्रियापाद दूसरा अनुषपाद तीसरा उपोदघात और चौथा उपसंहारपाद है। पहले के दो पादों को ‘पूर्व भाग’ कहा जाता है, तृतीय पाद ही ‘मध्यम भाग’ है, और चतुर्थ पाद को ‘उत्तर भाग’ कहा गया है। पुराणों के विविध पांचों लक्षण ‘ब्रह्माण्ड पुराण’ में उपलब्ध होते हैं। इस पुराण के प्रतिपाद्य विषय को प्राचीन भारतीय ऋषि जावा द्वीप (वर्तमान में इण्डोनेशिया) लेकर गए थे। इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है।

पूर्व भाग के प्रक्रिया पाद में पहले कर्तव्य का उपदेश नैमिषा आख्यान हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति और लोकरचना इत्यादि विषय वर्णित है, द्वितीयभाग में कल्प तथा मन्वन्तर का वर्णन है, तत्पश्चात लोकज्ञान मानुषी-सृष्टि-कथन रुद्रसृष्टि-वर्णन महादेव विभूति ऋषि सर्ग अग्निविजय कालसदभाव-वर्णन प्रियवत वंश का वर्णन पृथ्वी का दैर्घ्य और विस्तार भारतवर्ष का वर्णन फिर अन्य वर्षों का वर्णन जम्बू आदि सात द्वीपों का परिचय नीचे के पातालों का वर्णन भूर्भुवः आदि ऊपर के लोकों का वर्णन ग्रहों की गति का विश्लेषण आदित्यव्यूह का कथन देवग्रहानुकीर्तन भगवान शिव के नीलकण्ठ नाम पडने का कथन महादेवजी का वैभव अमावस्या का वर्णन युगत्वनिरूपण यज्ञप्रवर्त्तन अन्तिम दो युगों का कार्य युग के अनुसार प्रजा का लक्षण ऋषिप्रवर वर्णन वेदव्यसन वर्णन स्वायम्भुव मनवन्तर का निरूपण शेषमनवन्तर का कथन पृथ्वीदोहन चाक्षुषु और वर्तमान मनवन्तर के सर्ग का वर्णन है।